काश दुष्टों की भीर में अपना भी कोई नायक होता,
दुश्मनों में अपना भी कोई दोस्त होता|
नक़ल करने वाले कुछ अक्ल रखते,
भीर से कोई चेहरा अलग भी दिखता |
जोश वाले होश न खोते, भीरु तलवार न ढोते,
भोजन का भूख से वास्ता होता,
जिस्म से रूह का रिश्ता होता |
यदि आग में आग होती,
तो नेता की कुर्सी , पुलिस का डंडा कबका जल गया होता |
चिंतन होता तो चिंता न होती,
प्रसंशा मिलाती तो पुरुस्कार के लिए व्यथा न होती,
धर्म होता तो धर्मान्धता रोती|
फिर इस धरा से बेहतर कोई स्वर्ग होता ||
– उदय चौधरी
नोट: श्री उदय चौधरी, मेरे चाचा जी हैं| विलक्षण प्रतिभा के स्वामी| बैंक मे कार्यरत हैं, समय मिलने पे कविता करते हैं| उन्ही की कविता ‘अतृप्त आकांछा’ की कुछ पंक्तियाँ मे यहाँ पेश कर रहा हूँ|
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